मैं भटकता जाता था...
रेशमी-सी माया थी,
और मैं तकता जाता था...
जब तेरी गली आया, सच कभी नज़र आया...
मुझमें ही वो खुशबू थी जिसे तूने मिलवाया |
टूटके बिखरना मुझको ज़रूर आता है,
वरना इबादत वाला सहूर आता है,
सजदे में रहने दो, अब कहीं न जाऊंगा
अब जो तुमने ठुकराया तो सँवर न पाउँगा |
सिर उठा के मैंने तो कितनी ख्वाहिशें कि थी...
कितने ख्वाब देखे थे, कितनी कोशिशें कि थी...
जब तू रूबरू आया ....
जब तू रूबरू आया, नज़रें न मिला पाया...
सिर झुका के इक पल में, मैंने क्या नहीं पाया |
तेरे दर पे झुका हूँ, मिटा हूँ , बना हूँ ...
तेरे दर पे झुका हूँ, मिटा हूँ , बना हूँ ...
दरारें-दरारें हैं माथे पे मौला......
मरम्मत मुकद्दर कि कर दो मौला !!!
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