Thursday, February 11, 2010

Gulzar & me...(version-2)

"दिल की वादी में चाहत का मौसम है और यादों की डालियों पर अनगिनत बीते लम्हों की कलियाँ महकने लगी है | अनकही-अनसुनी आरज़ू, आधी सोयी हुई, आधी जागी हुई...आँखें मूँद के देखती है...ज़िन्दगी | ज़िन्दगी जिसके पहलु में मोहब्बत भी है, तो हसरत भी है, पास आना भी है, दूर जाना भी है | वक़्त बहता है झरने सा यह कहता हुआ ... दिल की वादी में चाहत का मौसम है ......."

आज फिर इस चाहत को गुलज़ार कर रहा हूँ गुलज़ार के साथ...

     "याद है इक दिन...
      मेरे मेज़ पे बैठे-बैठे
      सिगरेट की डिबिया पे तुम ने
      छोटे से इक पौधे का
      एक स्केच  बनाया था
      आ कर देखो-
      उस पौधे पर फूल आया है !!'

 




Gulzar will come back again...
wait for next posts...Bbye for now !

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